18.01.1969
"...आज जब हम वतन में गई तो शिवबाबा बोले - साकार ब्रह्मा की आत्मा में आदि से अन्त तक 84 जन्मों के चक्र लगाने के संस्कार हैं तो आज भी वतन से चक्र लगाने गये थे।..."


"...तुम बच्चे जब सूक्ष्मवतन में आते हो तो स्थूल आकर्षण खत्म हो जाती है तो वहाँ भी धरती की आकर्षण नहीं रहती है। यह है ध्यान द्वारा और वह है साइंस द्वारा। ..."

 

"...आज जब मैं वतन में गई तो बापदादा हम सभी बच्चों का स्वागत करने के लिए सामने उपस्थित थे। और जैसे ही मैं पहुँची तो जैसे साकार रूप में दृष्टि से याद लेते थे वैसे ही अनुभव हुआ लेकिन आज की दृष्टि में विशेष प्रेम के सागर का रूप इमर्ज था। एक-एक बच्चे की याद नयनों में समाई हुई थी। ..."


"...आज जब वतन में गई तो जैसे ही हम पहुँची तो बापदादा सामने थे ही लेकिन क्या देखा कि ब्रह्मा बाबा के गले में ढेर की ढेर मालायें पड़ी हुई थी। फिर बाबा ने कहा यह माला उतार कर देखो। माला उतारी तो कोई बड़ी माला थी कोई छोटी। ..."


"...साकार रूप में जो बापदादा ने श्रृंगार कराया वह अब अव्यक्त वतन में बापदादा देखेंगे। ..."

 

"...मैंने बाबा से पूछा - बाबा आप सारा दिन वतन में क्या करते हो? बाबा ने कहा चलो मैं तुमको वतन का म्युजियम दिखलाऊँ तुम तो म्युजियम बनाने के पहले प्लैन बनाते हो बाबा का म्युजियम तो एक सेकेण्ड में तैयार हो जाता है। फिर क्या देखा? एक बहुत बड़ा हाल था। एक ही हाल में हम बच्चे ढेर की ढेर माडल के रूप में खड़े थे। हमने कहा बाबा यह तो हम ही म्यूजियम में खड़े हैं। बाबा ने कहा - बच्ची बाबा का म्युजियम यही है। ..."

 

"...मैं अव्यक्त वतन में बच्चों से मिलता, बहलता रहता हूँ। अव्यक्त रूप वाले बच्चे यह अनुभव कर सकते हैं। मैं भी खास समय पर खास बच्चों को याद करता हूँ। ऐसी टचिंग बच्चों को होती ही होगी।..."

 

"...आज जब वतन में गई तो जाते ही अनुभव हो रहा था जैसे कि लाइट के बादलों से क्रास करके वतन में जा रही हूँ। बादलों की लाइट ऐसे लग रही थी जैसे सूर्यास्त होते समय लाली देखने में आती है। जैसे ही वतन में पहुँची तो वहाँ भी ऐसे ही देखा कि लाइट के बादलों के बीच बापदादा का मुखड़ा सूर्य-चन्द्रमा समान चमकता हुआ देखने में आ रहा था। सीन तो बड़ी सुन्दर दिखाई दे रही थी लेकिन आज का वायुमण्डल बिल्कुल शान्त था। बापदादा के मुलाकात में भी शान्ति और शक्ति की भासना आ रही थी। फिर तो मुस्कराते हुए बाबा बोले - भल तुम बच्चे साकार शरीर में साकारी सृष्टि में हो फिर भी साकार में रहते ऐसे ही लाइट माइट रूप होकर रहना है जो कोई भी देखे तो महसूस करे कि यह कोई फरिश्ते घूम रहे हैं। लेकिन वह अवस्था तब होगी जब एकान्त में बैठे अन्तर्मुख अवस्था में रह अपनी चेकिंग करेंगे। ऐसी अवस्था से ही आत्माओं को आप बच्चों से साक्षात्कार होगा।..."

 

"...आज वतन में एक तरफ तो बिल्कुल शान्ति थी, दूसरे तरफ फिर प्यार का रूप बहुत था। क्या देखा? बाबा की बाँहों में सभी बच्चे समाये हुए थे। साथ-साथ प्रेम का सागर तो था ही। बाबा ने कहा - तुम शक्तियों को भी सर्व आत्माओं को ऐसे ही अब अपने समीप लाना है। आपकी दृष्टि में बाप समान जब प्रेम और शक्ति दोनों ही पावर होगी तब आत्मायें नजदीक आयेंगी। ..."

 

"...आज जब इस देह और देह के देश से परे अपने को सूक्ष्मवतन जिसको ब्रह्मापुरी कहते हैं वहाँ गई तो परमात्मा बाप ने एक दृश्य दिखाया - बहुत बड़ी एक भीड़ देखी - फिर देखा जैसे कोई टिकेट बाँट रहा है और हरेक कोशिश कर रहा है कि हमें भी टिकेट मिले। लेकिन थोड़े समय में देखा कि कोई-कोई को टिकेट मिली और कोई-कोई टिकेट से वंचित रह गये। जिनको टिकेट मिली वह दिल ही दिल में हर्षाते रहे और जिन्हें नहीं मिली वह एक दो को देखते रहे। वह टिकेट कहाँ की थी उस पर एक दूसरा दृश्य देखा - एक बड़ा सुन्दर दरवाजा था जो अचानक खुला - जिन्हों के पास टिकेट थी वह तो दरवाजे के अन्दर चले गये और जिनके पास टिकेट नहीं थी वह बड़े ही पश्चाताप से देख रहे थे। उस गेट पर लिखा हुआ था - ' 'स्वर्ग का द्वार ''।..."

 

"...आज जब वतन में गई तो जाते ही क्या देखा कि शिवबाबा और अपना ब्रह्मा बाबा दोनों आपस में बैठे थे और सामने जैसे एक छोटी पहाड़ी बनी हुई थी। वह किसकी थी? क्या देखा कि ढेर के ढेर पत्र थे। इतने पत्र थे, इतने पत्र थे जैसे कि पहाड़ियां बन गई थी ..."

 

"...सभी बच्चों के उल्हनों के पत्र सूक्ष्मवतन में पाये। रेस्पान्ड में बापदादा बच्चों को कह रहे हैं कि ड्रामा की भावी के बन्धन में सर्व आत्मायें बंधी हुई हैं। सभी पार्ट बजा रही हैं। उसी ड्रामा के मीठे-मीठे बन्धन अनुसार आज अव्यक्त वतन में पार्ट बजा रहा हूँ। सभी बच्चों को दिल व जान सिक व प्रेम से अव्यक्त रूप से याद प्यार बहुत-बहुत-बहुत स्वीकार हो। ..."

 

"...वतन में बाबा ने सभी बच्चों को इमर्ज कर अपने हस्तों से जल्दी-जल्दी एक एक दृष्टि भी दे रहे थे, हाथों से गिट्टी भी खिला रहे थे। लेकिन एक एक को एक सेकेण्ड भी जो दृष्टि दे रहे थे, उस दृष्टि में बहुत कुछ भरा हुआ था। ..."

 

"...आज जब वतन में गई तो कोई भी नजर नहीं आ रहा था। दूर से कोई जैसे आवाज आ रही थी - ऐसे लग रहा था जैसे कोई खास कार्य हो रहा हो। मैं पहले तो कुछ रूकी लेकिन फिर आगे चलकर क्या देखा - शिवबाबा ब्रह्मा बाबा, मम्मा और विश्वकिशोर चारों ही आपस में बातचीत कर रहे थे और बहुत प्लैन उनके आगे रखे थे।..."

 

"...आज जब वतन में गई तो बापदादा दोनों बहुत बिजी थे। क्या देखा - दोनों के आगे बहुत से फूल भी थे और पत्ते भी थे। जैसे गुलदस्ते में फूल भी डाले जाते और पत्ते भी डाले जाते। फूल दो तीन प्रकार के अलग-अलग थे, उनको देख रहे थे और छांट रहे थे। तो बाप-दादा दोनों उसी ही कार्य में बिजी थे। मुझे देखा भी नहीं। जब मैं नजदीक गई तो मुझे देख मुस्कराया - और कहा कि मैं सारा दिन बिजी रहता हूँ। देखो बच्ची कितनी बड़ी कारोबार चल रही है। यह फूल पत्ते तीन क्वालिटी के अलग-अलग करके रखे हैं। पहले बाबा ने मुझे फूल दिखाये जिनकी संख्या बहुत कम थी फिर बीच की क्वालिटी दिखाई जिसमें फूल बहुत थे लेकिन साथ में थोड़े पत्ते भी लगे थे। फूल अच्छे थे लेकिन जो पत्ते लगे हुए थे वह कुछ डिफेक्टेड थे। तीसरी क्वालिटी में फिर पत्ते जास्ती थे और फूल बहुत ही कम थे। इस पर बाबा ने मुझे समझाया कि यह पहली क्वालिटी जिसमें थोड़े फूल हैं - यह वह बच्चे हैं जो बिल्कुल दिल पर चढ़े हुए हैं और ऐसे दिल वाले अनन्य बच्चे बहुत ही थोड़े हैं। दूसरे नम्बर वाले बच्चे हैं बहुत अच्छे, परन्तु थोड़ा कुछ कमी है। फूल बने हैं लेकिन थोड़ी कमी है। बाकी तीसरी क्वालिटी के हैं प्रजा। उनमें कोई फूल निकलता है जो पीछे जाने वाला है। बाकी सब हैं प्रजा। तो दो ऊपर की क्वालिटी बच्चों की है। बापदादा अब गुलदस्ता सजाते हैं। जब गुलदस्ता सजाया जाता है तो सिर्फ फूल डालने से गुलदस्ता नहीं शोभता। उसमें कुछ पत्ते भी चाहिए। तुम फूल हो लेकिन तुम्हारे साथ पत्ते भी चाहिए। तुम राजा बनेंगे तो प्रजा भी चाहिए ना। तो प्रजा रूपी पत्तों के बीच में फूल शोभता है। तो यहाँ बैठे तुम बच्चों का गुलदस्ता बनाता हूँ। और देखता हूँ कि एक फूल ने कितनी प्रजा बनाई है। जिसने जास्ती प्रजा बनाई है उनका गुलदस्ता भी शोभता है।..."

 

"...आज जब मैं वतन में गई तो ऐसे लगा जैसे कोई सूर्य के नजदीक जाए तो सूर्य की गर्मा- इस या सकाश तेज आती है, ऐसे ही आज वतन में जैसे ही आगे बढ़ते गये तो ऐसे अनुभव हुआ जैसे कोई भट्टी के आगे जाते हैं। आज बाबा लाल-लाल लाईट में जैसे अव्यक्त फीचर में दिखाई दे रहे थे और सूर्य के समान किरणें निकल रही थी।..."

 

 

"...आज जब मैं वतन में गई तो जैसे एक सभा लगी हुई थी - क्लास हो रहा था। पहले तो मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। बापदादा ने नयनों से स्वागत किया।..."

 

 

"...आज जब मैं वतन में गई तो बाबा नहीं दिखाई दिये। थोड़ी देर के बाद बाबा को देखा तो मैंने पूछा आप कहाँ गये थे? बाबा बोले - आज गुरूवार का दिन है तो सभी बच्चों के पास चक्र लगाने गये थे। वैसे तो साकार रूप में इतने थोड़े समय में सब जगह नहीं पहुँच सकता था। अब तो अव्यक्त वतन में अव्यक्त विमान द्वारा राकेट से भी जल्द पहुँच सकते हैं। ..."

 

 

"...मैंने बाबा से पूछा कि पहले वतन में जो गये हुए बच्चों का इतना संगठन था इसका रहस्य क्या था! बाबा ने कहा पूरा राज तो बाद में चलकर सुनायेंगे लेकिन साकार रूप से जो कोई सर्विस अर्थ या कुछ हिसाब किताब चुक्तू करने अर्थ चले गये हैं उन बच्चों से मुलाकात करने के लिए बुलाया था। बाबा उनसे हालचाल पूछ रहे थे कि कौन-कौन, किस रीति से किस रूप से क्या-क्या कर रहे हैं। हमने कहा बाबा, यह किस रूप से स्थापना के कार्य में बिजी हैं? तो बाबा बोले बच्ची यह आगे चलकर स्पष्ट करेंगे, फिर भी शार्ट में सुनाते हैं। बाबा ने कहा - बच्ची जब लड़ाई होती है तो किसी भी लश्कर को जब जीतना होता है तो सिर्फ एक तरफ से नहीं चारों तरफ से लश्कर भेजकर पूरा घेराव डाल देते हैं। इस संगठन से यह मालूम हुआ कि जो भी बच्चे गये हैं वह चारों और फैल गये हैं। अभी चारों तरफ स्थापना की नीव पड़ गई है। बाकी अब आर्डर देने की जरूरत है।..."

 

 

21.01.1969
"...आज जब वतन में गई तो सभी बच्चों की ओर से बाबा को यादप्यार दी और अर्जी डाली। ब्रह्मा बाबा को भी अर्जी डाली। तो ब्रह्मा बाबा यही बोले कि मेरा हाथ तो शिवबाबा के पास है। जो करायेंगे हम वही करेंगे।..."

 

 

"...शिवबाबा ने कहा कि जब बच्चा बड़ा होता है तो बाप और बच्चा समान होता है। तो मैं भी मुरब्बी बच्चे की राय बिना कुछ नहीं कर सकता हूँ। पहले बाप फिर बच्चा, अभी है पहले बच्चा फिर बाप। तो यही वतन में देखा - दोनों ही एक समान और एक दो के बहुत स्नेह और प्रेम में थे। जैसे दो मित्र मिलते हैं, ऐसे ही बाप-दादा दोनों की आपस में रूहरूहान की सीन दिखाई दे रही थी। ब्रह्मा बाबा कहे जो आज्ञा और शिवबाबा कहे जो बच्चे की राय। दोनों ही मुस्करा रहे थे। हमने कहा एक सेकेण्ड के लिए बच्चों से मुलाकात करके आइये। उस समय दोनों की तरफ देखा तो आँखों से ऐसा लगा कि जो शिवबाबा ने कहा वह ब्रह्मा बाबा को मंजूर था। ..."

 

 

"... ब्रह्मा वतन से देख रहे थे कि कैसे-कैसे कोई आता है, कब-कब आता है। किस रूहाब से आता है। किस स्थिति से मिलते हैं! यह भी रिजल्ट बापदादा दोनों ही इकट्ठे देखते रहे।..."

 

 

22.01.1969
"...आज वतन में गई तो ब्रह्मा बाबा जैसे यहाँ मुलाकात करते थे वैसे वहाँ ब्रह्मा बाबा ने मुलाकात की। ..."

 

 

"...बाबा ने कहा - भल वतन में चीज़ें खाते हैं लेकिन यज्ञ के भोजन की रसना बहुत अच्छी है। ..."

 

 

23.01.1969
"...आज अव्यक्त वतन से मुलाकात करने आया हूँ। अव्यक्त वतन में आवाज नहीं परन्तु यहाँ आवाज में आया हूँ। ..."

 

 

"...बाबा ने बोला, वतन का अनुभव करने के लिए तैयार हो? क्या जवाब दिया होगा? यही कहा कि जो बाप की आज्ञा। जैसे चलायेंगे, जहाँ बिठायेंगे जिस रूप में बिठायेंगे। बच्चों के अन्दर यही संकल्प होगा कि बापदादा ने छुट्टी क्यों नहीं ली? बाबा को भी यह कहा। बाबा ने कहा अगर सभी बच्चों को बिठाकर छुट्टी दिलाऊँ तो छुट्टी देंगे? आप भी बच्चों को देख, सर्विस को देख बच्चों के स्नेह में आ जायेंगे। इसलिए जो बाप ने कराया वही ड्रामा की भावी कहेंगे। व्यक्त रूप में नहीं, तो अव्यक्त रूप से मुलाकात कर ही रहे हैं। सर्विस की वृद्धि वैसे ही है, बच्चों की याद वैसे ही है लेकिन अन्तर यह है कि वह व्यक्त में अव्यक्त था और यह अव्यक्त ही है। जो नयनों की मुलाकात जानते होंगे वह नयनों से इस थोड़ी सी मुलाकात में अपने प्रति शिक्षा डायरेक्शन ले लेंगे। आप सभी को वतन में तो आना ही है। बच्चों से मुला- कात करने के लिए हर वक्त, हर समय तैयार ही रहते हैं। अब जहाँ तक बच्चों की जितनी बुद्धि क्लीयर होगी, उसी अनुसार ही अव्यक्त मिलन का अनुभव कर सकेंगे। ..."

 

 

"...सूक्ष्मवतन में बैठे भी हर बच्चे की दिनचर्या, हर बच्चे का चार्ट सामने रहता है। व्यक्त रूप से अभी तो और ही स्पष्ट रूप से देखते हैं। इसलिए सभी की रिजल्ट देखते रहते हैं।..."

 

 

02.02.1969
"...कई बच्चों ने सन्देश भेजा कि आप हमें भी अपने अव्यक्त वतन का अनुभव कराओ। यह सभी बच्चों की आशायें अब पूर्ण होने का समय पहुँच ही गया है। आप कहेंगे कि सभी सन्देशी बन जायेंगे। लेकिन नहीं। अव्यक्त वतन का अनुभव भी बच्चे करेंगे। लेकिन दिव्य- बुद्धि के आधार पर जो अब अलौकिक अनुभव कर सकते हो वह दिव्य दृष्टि द्वारा करने से भी बहुत लाभदायक, अलौकिक और अनोखा है। इसलिए जो भी बच्चे चाहते हैं कि अव्यक्त बाप से मुलाकात करें, वह कर सकते हैं। कैसे कर सकते हैं, इसका तरीका सिर्फ यही है कि अमृत- वेले याद में बैठो और यही संकल्प रखो कि अब हम अव्यक्त बापदादा से मुलाकात करें। जैसे साकार में मिलने का समय मालूम होता था तो नींद नहीं आती थी और समय से पहले ही बुद्धि द्वारा इसी अनुभव में रहते थे। वैसे अब भी अव्यक्त मिलन का अनुभव प्राप्त करना चाहते हो तो उसका बहुत सहज तरीका यह है। अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर रूह-रूहान करो। तो अनु- भव करेंगे कि सचमुच बाप के साथ बातचीत कर रहे हैं। और इसी रूह-रूहान में जैसे सन्दे- शियों को कई दृश्य दिखाते हैं वैसे ही बहुत गुह्य, गोपनीय रहस्य बुद्धियोग से अनुभव करेंगे। लेकिन एक बात यह अनुभव करने के लिए आवश्यक है। वह कौनसी? मालूम है? अमृतवेले भी अव्वक्त स्थिति में वही स्थित हो सकेंगे जो सारा दिन अव्यक्त स्थिति में और अन्तर्मुख स्थिति में स्थित होंगे। वही अमृतवेले यह अनुभव कर सकेंगे। ..."

 

 

"...वतन में बैठे-बैठे कई बच्चों के दिलों की आवाज पहुँचती रहती है। आप सोचते होंगे - शिवबाबा बहुत कठोर है लेकिन जो होता है उसमें रहस्य और कल्याण है। इसलिए जो आवाज पहुँचती है वह सुनकर के हर्षाता रहता हूँ। ..."

 

 

"...इस साकार वतन में रहते हुए भी फरिश्ते बन सकते हो। आप फिर कहेंगे आप वतन में जाकर फरिश्ता क्यों बनें? यहाँ ही बनते। लेकिन नहीं। जो बच्चों का काम वह बच्चों को साजे। जो बाप का कार्य है वह बाप ही करते हैं। बच्चों को अब पढ़ाई का शो दिखाना है। टीचर को पढ़ाई का शो नहीं दिखना है? टीचर को पढ़ाई पढ़ानी होती है। स्टूडेन्ट को पढ़ाई का शो दिखाना होता है। शो केस में शक्तियों को पाण्डवों को आना है। बापदादा तो है ही गुप्त।..."

 

 

02.02.1969
"...यह भी संकल्प आता है कि ड्रामा का सीन जल्दी पूरा कर सभी अव्यक्तवतन वासी बन जायें। बनना तो है। लेकिन आप बच्चों में इतनी शक्ति है जो अव्यक्त वतन को भी व्यक्त में खींचकर ला सकते हो। अव्यक्त वतन का नक्शा व्यक्त वतन में बना सकते हो। आशायें तो हरेक की बहुत हैं। ऐसे ही पहुँचती हैं जैसे इस साकार दुनिया में बहुत बड़ी आफिस होती है टेलीफोन और टेलीग्राफ की, वैसे ही बहुत शुद्ध संकल्पों की तारे वतन में पहुँचती रहती हैं।..."

 

 

"...अब सूक्ष्मवतन में आने जाने के बजाए स्वयं ही सूक्ष्मवतन वासी बनना है। यही बापदादा की बच्चों में आशा है। आना-जाना ज्यादा नहीं होना चाहिए। यह यथार्थ है। कमाई किसमें है? तो बाप बच्चों की कमाई को देखते हैं और कमाई के लायक बनाते हैं। इसलिए यह सभी रहस्य बोलते रहे। अभी समझा कि क्यों कहा था और अब क्या है? सूक्ष्मवतन के अव्यक्त अनुभव को अनुभव करो। सूक्ष्म स्थिति को अनुभव करो। आने जाने की आशा अल्पकाल की है। अल्पकाल के बजाए सदा अपने को सूक्ष्मवतनवासी क्यों नहीं बनाते? और सूक्ष्मवतनवासी बनने से ही बहुत वण्डरफुल अनुभव करेंगे। ..."

 

 

"...आप बच्चों में इतनी शक्ति है जो अव्यक्त वतन को भी व्यक्त में खींचकर ला सकते हो। अव्यक्त वतन का नक्शा व्यक्त वतन में बना सकते हो। आशायें तो हरेक की बहुत हैं। ऐसे ही पहुँचती हैं जैसे इस साकार दुनिया में बहुत बड़ी आफिस होती है टेलीफोन और टेलीग्राफ की, वैसे ही बहुत शुद्ध संकल्पों की तारे वतन में पहुँचती रहती हैं।..."

 

 

"...अभी तो सूक्ष्मवतन में ही अव्यक्त रूप से स्थापना का कार्य चलता रहेगा। जब तक स्थापना का कार्य समाप्त नहीं हुआ है तब तक बिना कार्य सफल किये हुए घर नहीं लौटेंगे, साथ ही चलेंगे और फिर चलने के बाद क्या करेंगे? मालूम है - क्या करेंगे? साथ चलेंगे और साथ रहेंगे। और फिर साथ-साथ ही सृष्टि पर आयेंगे। ..."

 

 

"...वतन में मम्मा को भी इमर्ज किया था। पता है क्या बात चली? जैसे साकार रूप में साकर वतन में मम्मा बोलती थी कि बाबा आप बैठे रहिये हम सभी काम कर लेंगे। इसी ही रीति से वतन में भी यही कहा कि हम सभी कार्य स्थापना के जो करने हैं वह करेंगे। आप बच्चों के साथ ही बच्चों को बहलाते रहिये। ऐसे ही साकार में कहती थी। वही वतन में रूह-रूहान चली। ..."

 

 

"...आज वतन में दूर से ही सवेरे से खुशबू आ रही थी। देख रहे थे कैसे स्नेह से चीजे बना रहे हैं। आपने देखा, भण्डारे में चक्र लगाया? चीजों की खुशबू नहीं स्नेह की खुशबू आ रही थी। यह स्नेह ही अविनाशी बनता है। ...स्नेह तो वतन में भी है और रहेगा। ..."

 

 

06.02.1969
"...आप सभी को भी वाया सूक्ष्मवतन होकर घर चलना है। हम मेहमान हैं ऐसा समझने से महान् स्थिति में स्थित हो जायेंगे। मेहमान के बजाए जरा भी एक शब्द में अन्तर कर लिया तो गिरावट भी आ जायेगी। वह कौन सा शब्द? मेहमान समझना है लेकिन महिमा में नहीं आना है। अगर महिमा में आ गये तो मेहमान नहीं बनेंगे। मेहमान समझेंगे तो महान् बनेंगे। ..."

 

 

15.02.1969
"...जब तक विनाश नहीं तब तक बाप साथ है। वतन में बाप गया है कोई कार्य के लिए। समय अनुसार वह सब कुछ होता रहेगा। इसमें न कोई विदाई है, न जुदाई, जुदाई लगती है? तुमने विदाई दी थी? अगर विदाई दी होगी तो जुदाई भी होगी। विदाई नहीं दी होगी तो जुदाई भी नहीं होगी। यह ड्रामा के अन्दर पार्ट चलता रहता है। बाप का खेल चल रहा है। खेल में खेल चलता रहेगा। आगे तो बहुत ही खेल देखने हैं। इतनी हिम्मत है? जब हिम्मत रखेंगे तब बहुत देखेंगे। आगे बहुत कुछ देखना है। परन्तु कदम को सम्भाल-सम्भाल कर चलाना है। अगर सम्भल कर नहीं चलेंगे तो कहाँ खड्डा भी आ जायेगा। एक्सीडेंट भी हो पड़ेंगे। बच्चों से मिलने के लिए थोड़े समय के लिए आया हूँ। बहुत कार्य करना है। वतन से बहुत कुछ करना पड़ता है। बच्चों की भी दिल पूरी करनी पड़ती है तो भक्तों की भी दिल पूरी करनी पड़ती है। सभी कार्य काम पर ही होते हैं। बाप का परिचय मिला ,खज़ाना, लाटरी मिली। अभी बच्चों की सर्विस पूरी की। वतन से अभी सबकी करनी है। बच्चे सगे भी हैं तो लगे भी हैं। सर्विस तो सबकी करनी है। ..."

 

 

26.06.1969
"...आज अनुभव सुनाते हैं। अनुभव सुनने और सुनाने की तो परम्परा से रीत है तो वतन में रहते क्या अनुभव करते हैं। वतन में होते भी टीचर का कनेक्शन होने कारण देखते हैं, कोई-कोई बहुत अलौकिकपन से पढ़ाई को रिवाइज कर रहे हैं, कोई समय गँवा रहे हैं कोई समय सफल कर रहे हैं। जब देखते हैं समय को गँवा रहे हैं तो मालूम क्या होता है? तरस तो आता है लेकिन तरस के साथ-साथ जो सम्बन्ध है, वह सम्बन्ध भी खैचता है। फिर दिल होती है कि अभी-अभी बाबा से छुट्टी लेकर साकार रूप में उन्हों का ध्यान खिंचवाये। लेकिन साकार रूप का पार्ट तो पूरा ही हुआ इसलिए दूर से ही सकाश देते हैं।..."

 

 

 

"...बाबा जैसे साकार रूप में लाल झण्डी दिखाते थे ना। वैसे ही वतन में भी। लेकिन देखने में आता है कि अव्यक्ति रस को, अव्यक्ति मदद को बहुत थोड़े ले पाते हैं।..."

 

 

 

06.07.1969
"...बाप अव्यक्त वतन वासी बना तो आप सबको भी अव्यक्त-वतन वासी बनना है। वह किस सृष्टि पर खड़े होकर अव्यक्त बने? आपको कहाँ बनना है? (साकार सृष्टि में तो सृष्टि है।) सृष्टि तो आलराउन्ड गोल है। सृष्टि में सारा झाड़ समाया हुआ है। परन्तु सृष्टि का ठिकाना संगम है। संगम की बलिहारी है, जिसने आप सबको यहाँ पहुँचाया। आप अपने ठिकाने को भूल जायेंगे तो फिर क्या होगा? ठिकाना देने वाला ही भूल जायेगा। ठिकाना पक्का याद करो। और बापदादा की जो पढ़ाई मिली है उनको धारण करो। ..."

 

"...अव्यक्त वतन से बापदादा बच्चों की सर्विस करने और साफ बनाने लिए आये हैं। बाप सेवा करते हैं। आप सब बच्चों का शुरू से लेकर अन्त तक बाप सेवक है। सेवा करने लिए सदैव तैयार है। बाप को कितना फखुर रहता है -हमारे बच्चे सिरमोर हैं, आँखों के सितारे हैं। जिन्हों के लिए स्वर्ग स्थापन हो रहा है। उस स्वर्ग के वासी बनाने के लिए तैयार कर रहे हैं। जो सम- झते हैं हम लक्ष्मी-नारायण बनेंगे इतना लक्ष्य पकड़कर फिर भी गफलत करते रहते हैं तो इसलिए बापदादा फिर भी सेवा करने आये हैं।..."

 

 

"...आप सबकी परख तब होगी जब जेवर पर पालिश हो, चमक हो, तब वैल्यु भी होगी और पहचानने वाले पहचान लेंगे। चमत्कार नहीं होगा तो खरीद कौन करेंगे? समझेंगे पता नहीं सच्चा है वा झूठा जेवर है। पैसा भी देवें, जेवर भी काम का न हो इससे क्या फायदा। तो आप सबकी पूरी सजावट हो जायेगी, तो खरीददार भी निकलेंगे और आप वतनवासी बनते जायेंगे।..."

 

 

16.07.1969
"...अब ज्ञान-सूर्य व्यक्त किनारा छोड़ अव्यवत्त वतन में खड़े हैं तो आप व्यक्त देश में सितारों की प्रत्यक्षता देखने में आती है। ..."

 

 

18.09.1969
"...बाप तुमको अव्यक्त वतन में बिठाते हैं। तो आप फिर व्यक्त वतन में क्यों आ जाते हो? वायदा तो ठीक नहीं निभाया। वायदा है जहाँ बिठायेंगे वहाँ बैठेंगे। बाप ने तो कहा नहीं है कि व्यक्त वतन में बैठो। व्यक्त में होते अव्यक्त में रहो। ..."

 

 

20.10.1969
"...अव्यक्त वतन से वर्तमान समय बाप-दादा हर बच्चे को कौन सा मन्त्र देते है? गो सून कम सून सर्विस प्रति जाओ और साथी बन करके जल्दी आओ। ..."